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(४५) महारं नाम रे ॥ली॥ रो० ॥१॥ वमला तो हंस विशम्यो रे लाल, लाधुं सुख शरीर रे॥ ली०॥ घोमो वड तले बांधीयो रे लाल, वछ गयो लेवा नीर रे ॥ ली० ॥ रो ॥ १७ ॥ ढाल हुइ जंगणीशमी रे लाल, कहे श्रीजिनोदय सूरि रे ॥ ली० ॥ वबराज जल कारणे रे लाल, जोतां पहोतो पूर रे ॥ ली ॥ रो० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ ३६७ ॥
॥दोहा॥ ॥ वलराज जल कारणे, चढीयो तरुवरमाल ॥ जलचर शब्द तिहां सुण्यो, दीनी सरोवर पाल॥१॥ चक्रवाक सारस घणा, पहतो तिहाँकणे वार ॥ कमलफुल मांहे तीरे, दीतुं निर्मल नीर ॥२॥ गरुम पंखी वासो वसे, मत्स कबर्नु गमजोवानो अवसर नहीं, जलने श्रायो काम ॥३॥ गम विसास्यो गगलो, जल लीयो पोयणपाम ॥ जल लेश पागे वस्यो, देखे सर्व आराम ॥४॥
॥ ढाल दशमी ॥ नावनानी॥ ॥ कीडो न बोडे रे गीरांदेरो नेमलो रे, हारे मारी
रे मद पाइ॥ ए देशी ॥ ॥ वत्सराज जब नीसख्यो रे, नीसस्यों हो पाणी
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