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॥ बं० ॥ मुज ना सापे मश्यो रे, जोर न चाव्युं कोय ॥॥१॥वमतरु शाखे बांधीने रे, हुं आयो चंदन काज ॥ बं॥ लेश चंदनने दाघशुं रे, लघु नाइ हंसराज ॥ बं० ॥॥ सर्व गाथा ॥ ५४१॥
॥दोहा॥ ॥रतन अमूलक मुज कन्हे, संख्या दश बार ॥ थापण राखो (ए) माहरी, अश्वरत्न दोश्सार॥१॥ शेठ सुणी मन हरखीयो, अश्व बंधाव्या बार ॥रत्न खेश् श्राघां धयां, ये चंदन तत्काल ॥२॥ बेउ नर जेतो उपडे, तोली लीयो वछराज ॥ मजूरने माथे दीयो, चाल्यो बंधव काज ॥३॥ श्रवण सरोवर श्रावीयो, श्राव्यो वनने गम ॥ नजर जरी नीहालीयो, कुंवर न देखे ताम ॥४॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ श्डर श्रांबा आंबली रे॥ ए देशी ॥ ॥ वमतरु माले बांधीयो जी, में बंधव हंसराज ॥ कुंती नगरे हुँ गयो जी, चंदन लेवा काज हो॥बांधव, बोलडो द्योने श्राज ॥ विलपे एम वछराज हो ॥ बांधव ॥बो॥१॥ एत्रांकणी॥ वम उपर चढी जोश्यु जी, किहां न देखे हंस ॥ वली नीचो ते उतस्यो
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