________________
नीकट्या, हारी सघj राज ॥ दमयंती साथे हुश्, वन मूकी महाराज ॥३॥ वली लंका गढ मांगीयो, रावण की, रूप॥ नव ग्रह पाये सेवता,की, श्स्युं खरूप॥४॥ ॥ ढाल बाग्मी ॥ देशी ललनानी ॥धमाल रागे ॥ __॥ ललना हो रामरूप कीधुं जलु, कीधो सीता पास ॥ ललना हो लखमण बंधव ते कीयो, कीधो वली वनवास ॥१॥ल ॥ सोवन मृग कीधो जलो, सीता वांसे धाय ॥ ल० ॥ जोगी सरूप कीयो जुन, रावण हरि ले जाय ॥२॥ल०॥ वांसे हनुमंत वांदरू, लंका बाली हाथ ॥ल०॥ समुज पाज बांधी तिणे, लंका कीधी अनाथ ॥३॥ ल०॥ रामचंद्र रावण थकी,घर पाणी निज सीत॥ल॥धीज कीयो सीता सती, प्रसरी दह दिशि कित्त ॥४॥ ल० ॥ पांडवनारी अपहरी, सुती जुवन ममारि ॥ लम् ॥ पद्मोत्तर तिहां पापीए, आणी जाश् मुरारि ॥५॥ लम् ॥ श्रवण रूप कीयो सारिखो, मात पिता बेउ अंध ॥ ल॥ पाणी जरतां पापीए, दशरथ हणीयो कंध ॥६॥ ल०॥ कृष्णरूप कीy नटुं, जिण विध हणीयो कंस ॥ ल० ॥ जीवजसा कंत तातनो, जिणे खोया बेहु वंश ॥७॥ ल०॥ लखीया
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org