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________________ ( १८ ) ॥ ढाल नवमी ॥ ॥ कर्मविटंबणा ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमरी मंदिर निरखती रे हां, यागे दीगे तिहां सहकार ॥ कर्मविटंबणा ॥ कां मुजने कारणे रे हां, कंपाणो जरतार ॥ क० ॥ १॥ है ! है ! जोवो जोवो रे हां, जोबन खावा धाय ॥ क० ॥ कंता तें साहस कीयो रे हां, हैडे दुःख न खमाय ॥ क० ॥ २ ॥ कंता तुजने कारणे रे हां, में कस्यां पाप अघोर ॥ क० ॥ पुरुष विपाश्या पापिणी रे हां, एम करती बहुला सोर ॥ क० ॥ ३ ॥ है ! है ! कंता तें कीधो जिस्यो रे हां, तेहवो मुज नवि थाय ॥ क० ॥ कंता करण तुं थयो रे हां, तें होमी निज काय ॥ क० ॥ ४ ॥ श्रापण यापे जाणयो रे हां, पण कंत न जाणे वात ॥ क० ॥ पोपट पंखी कारणे रे दां, हुं करशुं श्रातमघात ॥ क० ॥ ५ ॥ कंता तुं किदां उपनो रे हां, सो जो जाएं ठाम ॥ क० ॥ तो तुजने यावी मिलुं रे हां, थापुं करीने सामी ॥ ० ॥ ६ ॥ कंत विना हुं कामिनी रे हां, कां सरजी किरतार ॥ क० ॥ देव विछोहो कां दीयो रे हां, कृत उपर दीयो खार ॥ क० ॥ ७ ॥ इम विलाप करती घणुं रे हां, मन मांहे अति डुवाय ॥ क० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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