________________
( १०३ )
॥ ढाल बारमी ॥ राग धन्याश्री ॥
"
॥ मुम्मण शेठ शंका पमी रे, कीधुं मूंडुं काम ॥ इण वाते अपजशति हुवे रे, न करे कोई लेवा नाम कामो जी ॥१॥ पुत्र पिता हवे चिंतवे, रुडे रुडुं थाय ॥ मूंमाथी मूंडुं सदा हुवे, लोके एम कहाय ॥ मु० ॥ २ ॥ जे पाढे उपजे, सो मति पहेली होय ॥ काज न विसे पं, डुर्जन इसे न कोय ॥ मु० ॥ ३ ॥ हंस राजाए तलार तेमीया, मारो बिहुने ठाम ॥ धाक पडे जिम सघला गाममां को न करे ए काम ॥ मु० ॥ ४ ॥ शेठ कुटुंब शूली दीयो, मत करजो कांइ लाज ॥ घरनुं धन लूंटी इहां, सहु श्राणजो साज ॥ मु० ॥ ५ ॥ वछ कहे ना तुमे सुणो, शेव तो नहीं दोष ॥ कृत कर्म लखीयुं ते पामीए, इशुं केहो रोष ॥ मु० ॥ ६ ॥ मामात्रे कहीए सारिखी, करमे कीधी रीस ॥ पिताने परमेश्वर सारिखो, बेहु बेदीयां शीश ॥ मु० ॥ ७ ॥ मनकेसरी मुहते तिहां राखीया, दीधुं जीवितदान ॥ उंची नीची थापे जोगवी, सविहु पुष्य प्रमाण ॥ मु० ॥ ८ ॥ शुभ अशुभ लखी युं जे कर्ममां, ते निश्चेशुं होय ॥ नल राजाए दारी नारीने, वली वन मूकी सोय ॥ मु० ॥ ए ॥ हरिचंद्र राजा राज्य
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org