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(४७) चेतन देखी चित्तमां चिंतवे रे, हो वनमें उठी धाम ॥ पा॥ कां ॥ ए॥ पाणी परहुं नाखीयुं रे, हो लांबी मेली हाय ॥ ना विना हुं केम रहुँ रे, हो विश्व खावाने धाय ॥पा॥कां०॥१०॥नाइते की किस्युं रे, हो कीधो हुँ निराधार ॥सार करे तुंना माहरी रे, हो दीधो दते खार ॥पा०॥कां ॥१९॥ वार वार व बेगे करे रे, हो नीचो धरणी जाय॥ शक्ति गइ सहु शरीरनी रे, हो पाणी अन्न न खाय ॥ पा० ॥ कां ॥ १२ ॥ वह कुमर फूरे घणुं रे, हो किहां न देखे श्वास ॥ गलहबो देश हायशुं रे, हो बेठो रोवे पास ॥ पा० ॥ कां ॥ १३ ॥ ना ते की, किस्युं रे, हो हुँ बेगे वनवास ॥ मुजने दे तुं बोलमां रे, हो जिम मुज पूगे थाश ॥ पा० ॥कांग ॥१४॥ मुजशं प्रीति हती हंस ताहरी रे, हो सो हर केथी आज ॥ मुजहुँती अलगो थयो रे, हो विलपे श्म वडराज ॥ पा० ॥ कां० ॥ १५ ॥ जननी गर्ने बेहु उपन्या रे, हो जन्म्या बेहु समकाल॥परदेशे बेहु आपे वध्या रे, हो बेहु जणीया रागमाल ॥ पा० ॥ कां ॥ १६॥माताए वली अपमाणीया रे, हो राजा कीधी रीस ॥ मनकेसरी आपणने मूकीया रे, हो
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