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(ए) जो बोलशो तो देशुंठोक ॥ राय वचन एहवां जब कह्यां, मान करीने बेग रह्या ॥ ११ ॥ कुंवरी बोली सुण राजान, एक चित्ते सुणजो दक्ष कान ॥ नगरी तुमारी पुरपेगण, बावन वीर तणुं तिहां गण ॥ १५ ॥ यादव वंश करे त्यां राज, उत्तम तणां समरे काज ॥ शालिवाहन सुत प्रगट प्रताप, नरवाहन राजा तुम बाप ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ ३ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ नीनश्यानी देशी॥ ॥ तुम जननी हंसावलि रे, तसु जन्म्या बे अंगजातो जी ॥ हंस कुमर वडराज बेहु हुवा, नाम दीयां माय तातो जी॥१॥ हंस नरेसर सुणजो तुम चरित्त, नानपणानी वातो जी॥ पनर वरष विदेशे रह्या तुमे, जणीया दिन ने रातो जी॥हं०॥॥ मात पिता नेटणने काजे, पहोता पुरपेगणो जी॥मंत्रीए तिहां मारण मांमीया, हुकम कीयो राजानो जी ॥ हं० ॥३॥ प्रचन्नपणे मनकेसरी राखीया, दी, जीवितदान जी ॥ अश्वरत्न बे मंत्री श्रापीयां, दीधां रत्न प्रधान जी ॥ हं॥४॥ तिहांथी तमे बेहु नीसस्या, पहुता अटवी गमो जी ॥ हंस कुमरने तिरषा उपनी, जलनुं नहीं तिहां नामो जी ॥ हं०
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