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(५७) शेठने दीया, शेठनी पूगी श्राश ॥ वनराज मन चिंतवे, जोजो कर्मप्रकाश ॥३॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ हवे धनसार विमासीयुं ॥ ए देशी ॥ ॥ चोर तणी पेरे बांधीयो, उपर देतो मार ॥ घीसावीने तामीयो,देखे बहु नर नार॥कर्म तणी गति वांकमी, बूटे नहीं कोई ॥ नल राजा तिण सारिखा, रमवमीया सोइ ॥१॥ क० ॥ जोजो राजा मुंफने, हुता बहुला देश ॥कर्मे जीख मंगावीयो,मून जे परदेश ॥२॥ क० ॥ संनूम चक्री वली श्राठमो, मू समुछ मजार ॥ षट् खंम शझिनो धणी, गयो नरक मकार ॥३॥क० ॥ करमे दशरथ काढीया, लखमण ने राम ॥ सीता साथे रमवमी, करम तणां ए काम ॥४॥ का॥ कोटवाल वेगयो,राजानी पास ॥ श्रागल ले उजो कीयो, स्वामी सुणो अरदास ॥५॥ क० ॥ शेष कहे स्वामी माहरे, पेठगे सेवा काज ॥ अश्वरत्न बे काढीयां, हमणां महाराज ॥६॥ क ॥ वमा बुढाना पुण्यश्री, में लाधो चोर ॥ श्रश्व थकी उतारीयो, में करीने शोर ॥ ७॥ क० ॥ बात राजाने विनवी, सहु जाणो फोक ॥ वात कहे सहु
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