Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 100
________________ ( (যTU ) ॥ ५ ॥ वम बंधव तुजने कारणे, पहोतो जलने काजो जी ॥ जल लेने पाठो आवीयो, चपल गते वचराजो जी ॥ ० ॥ ६ ॥ हंस कुमरने विषधर मशीयो, जिम बांध्यो तरुमालो जी ॥ कुंती नगरी चंदन लेइने, श्राव्यो सरनी पालो जी ॥ हं० ॥ ७ ॥ कुमर न दीगे माले बांधी यो, दीघी बहुली धाहो जी ॥ हियहुं कूटे शिरने आहणे, दीघो हंसने दादो जी ॥ ० ॥ ८ ॥ पग लखीया हंस कुमर तथा दीधा सरला सादोजी ॥ फरी फरीने वन सह जोइयुं, मूकी मन परमादोजी ॥ ॥ ॥ कुंती नगरी पाठो आवीयो, शेठे दीधो दोषो जी ॥ चोर करीने राजा कालीयो, कीधो राजा रोषो जी ॥ ० ॥ १० ॥ वार रतन ने वली बिहुं तुरी, राख्यां मुम्मण शेठ जी ॥ कूडुं यात दीयुं कुमर जणी, नीची घाली दृष्टि जी ॥ हं० ॥ ११ ॥ चित्रलेखानां वचन सुखी करी, खलजलीया सहु लोको जी ॥ कुमति सहुने घ्यावी सामटी, सहुने पशे ठोको जी ॥ ० ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ८१५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ महाजन सह सांसे पंड्या, कीधुं मूंडु काम ॥ साथै श्राव्यासह, रोषे हरशे दाम ॥ १ ॥ इस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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