Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ८६ ) ॥ ढाल चोथी ॥
॥ राग सिंधुको ॥ हाथीया रे हलके वेखावे महारे प्राणोरे ॥ अथवा ॥ कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी ॥ उदक लेने अंग पखाली युं रे, पीधुं निर्मल वार ॥ वात विचारे बेठो पाठली रे, कोण करशे मारी सार ॥ १ ॥ चित्रलेखानी चिंता अति घणी रे, कोइ नहीं बे पास ॥ एकलमी ते अबला किम रहे रे, होशे सहीय निराश ॥ चित्रलेखा० ॥ २ ॥ मारे कारण नारी जूरशे रे, रहेशे सहीय उदास ॥ नारी विहुएं जीव्युं कारिमुं रे, व मूके निःश्वास ॥ चि० ॥ ३ ॥ महारुं डूषण नारी कोइ नहीं रे, अचरिज ए दुइवात ॥ आगे विबोहां नारी कंते हुआ रे, नाखे
सुपात ॥ चि० ॥ ४ ॥ रलो रोयो को जाऐ नहीं रे, होशे जे होवणहार || दुःखडे कीधुं कांही नवि पामीए रे, हैडे कीधो विचार ॥ चि० ॥ ५ ॥ सात दिवसनी निद्रा सामटी रे, सुतो बाग मकार ॥ पुण्य प्रजावे सह तरुवर फल्यां रे, जाइ जुई सहकार ॥ चि०॥६॥ लोक देखीने चरिज उपन्यो रे, मालप पासे जाय ॥ दैवसंयोगे वामी नवपल्लव थइ रे, सलखु सांजली धाय ॥ चि० ॥ ७ ॥ बाग फरीने जोवे
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