Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 93
________________ (ए‍) ॥ ढाल बही ॥ ॥ राग मल्हार || लिंगमीनी देशी ॥ ॥ कुमरी कुमरी अक्षर देखीने रे, जाग्यो मनमां मोह ॥ कुमरने कुमरने राख्यो साहेबे जीवतो रे, जाग्यो सहु दोह ॥ १ ॥ जीवतां जीवतां राजेसर सहु वी मले रे, मूत्र केहो सोस ॥ जायने जमारो श्राश विबुद्धको रे, कंत धरयो मन रोष ॥ जीव० ॥ २ ॥ कंत कंत पखे हुं रही जीवती रे, ते तो सायर दोष ॥ ताहो रे ताहो कंतो तुज यावी मले रे, तिए में कीधो शोष ॥ जीव० ॥ ३ ॥ नाहले नाइले उलंना लखीया कारिमा रे, मूल न जाणे वात ॥ तहारे तहारे कारणे हुं फूरती रहुं रे, सदा श्रहो ने रात ॥ जीव० ॥४॥ में तुज में तुज कारण कंता परिहरया रे, रुमा सरस आहार ॥ तन भूषण तन भूषण कंता सहु तज्यां रे, सो जाये किरतार ॥ जीव० ॥ ५ ॥ घोडो ते घोडो ते दोमीने मरे रे, सार न लहे सवार ॥ घोमाने घोमाने राजेसर दूषण को नहीं रे, बेसणहार गमार ॥ जीव० ॥ ६ ॥ तारे तारे कारण हुं दुःखणी हुइ रे, कूरी दिन ने रात ॥ सुडे सुडे सिंचीयुं वाला में हैयमलुं रे, पण तें न जाणी वात ॥ जीव० ॥ ७ ॥ मरम मरम For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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