Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२) मात विडोड्यां बाल रे ॥ कं०॥रए ॥ के मरजावे सही रे, मास्या विष दहाथ रे॥०॥के में लोन वशे करी रे, खूट्या बहुला साथ रे ॥ कं० ॥ २० ॥ के केहनां घर नांगीयां रे,बालपणे में बाल रे॥०॥ होजो अंधां पांगलां रे, दीधी एहवी गाल रे ॥ कं० ॥१॥ निंदा कीधी साधुनी रे, आहार दीयो अंतराय रे ॥ कं० ॥ पाप विचारे आपणां रे, केतांक कहेवाय रे ॥ कं० ॥ २५ ॥ वार वार फूरे घणुं रे, नाखे आंसुपात रे ॥ कं० ॥ इण जीव्या मरवु नबुं रे, करशुं श्रातमघात रे ॥ कं० ॥२३॥ चित्रलेखा कहे स्वामिनी रे, जीवंतां सहु होय रे ॥कं०॥ नानुमती ने सरस्वती रे, बेहु मख्यां सहु जोय रे ॥ कंग ॥ २४॥ धीरपणुं धरीए हश्ये रे, महक न दीजे रोय रे ॥ कंग॥ शील नली पेरे पालतां रे, आपद् पूरे होय रे ॥ कं ॥ २५ ॥ शील थकी सुख कोणे लह्यां रे, ते सुणजो दृष्टांत रे ॥ कं० ॥ राम घरणी सीता सती रे, आवी मिल्यां बे अंत रे ॥ कं० ॥२६॥ मूकी अबला एकली रे, सिंहल हीपे नारी रे ॥ कं० ॥ पग उलांस्या नारीना रे, पद्मावती जरतार रे ॥ कं० ॥ २७ ॥ नल राजा नारी तजी रे, मूकी दंग
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