Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६७) वनराजे मान्युं वयण, बाहिर कीधो वास ॥ राजा रीसाणे थके, कोश् न आवे पास ॥॥ जननी गनो पूरवे, अन्न धन चीर कपूर ॥ चंद्रलेखाने पाठवे, नित्य उगमते सूर ॥३॥
॥ ढाल सातमी ॥ राग कानमो॥ ॥ कामिनी तुं मूकने महारो हाथ ॥ ए देशी ॥
॥ वनराज मन चिंतवे रे, कीधुं में कुण काम ॥ में अबला नारी जणी रे, बंमावी एह गम रे॥१॥ कामिनी तुं मूकने महारो शोष ॥ ए आंकणी ॥ वराज कहे कामिनी रे, इण वाते नहीं तुज दोष ॥ हूं पापी जूंमो थयो रे, मुजयी रायनो रोष रे ॥२॥ का ॥ नारी तें शुं जाणीयुं रे, मुज थाप्यो नरतार ॥ विधाता रूठी सही रे, के रूगे किरतार रे ॥३॥ का० ॥ मुजने को जाणे नहीं रे, इण नगरीनां लोक ॥ परदेशी बुं बापमी रे, तुजने मुजयी शोक रे ॥४॥ का० ॥ सुरतरु सम तें जाणीयो रे, दीगे अधिक स्वरूप ॥ नेद न जाण्यो माहिलो रे, लागी तुजने चूंप रे ॥५॥का॥रतन चिंतामणि सारिखो रे, तें करी काल्यो साच ॥ हुँ मूरख बापडो रे, नीवमझुं हुं काच रे ॥६॥
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