Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ ( 9 ) लोकाचार रे ॥ अवगुण कीधे गुण करे रे, उत्तम एह आचार रे ॥ १ ॥ राजा मन मांहि हरखीयो रे, हरख्यो सह परिवार रे ॥ कुंवरी न पडे पांतरो रे, जोइ कीधो जरतार रे ॥ जु० ॥ १३ ॥ उत्सवशुं राय आणीयो रे, शणगारयां सहु हाट रे ॥ नारी कंत साथे करी रे, जोवे नरना था रे ॥ जु० ॥ १४ ॥ गोखे चढी जुवे गोरमी रे, दीसे देवकुमार रे ॥ परमेशर या घड्यो रे, एहवो नहीं संसार रे ॥ जु० ॥ १५ ॥ वछराज सुख जोगवे रे, सहुको माने छाप रे ॥ हंसराज हैडे वसे रे, खटके साल समान रे ॥ जु० ॥ १६ ॥ किहां कुंती नगरी रही रे, किहां कनकावती एह रे ॥ समुद्र विचे श्रमो पड्यो रे, एम चिंतवे व तेह रे ॥ ० ॥ १७ ॥ कर्म मेले तिहां शुं ययुं रे, पुष्पदंत मलीयो राय रे ॥ शीख दीयो हवे स्वामीजी रे, थापण स्थानक जाय रे ॥ जु० ॥ १८ ॥ ववराज वाणी सुणी रे, दुबो साथ साथ रे ॥ वे कर जोमी विनवे रे, सुजो पृथिवीनाथ रे ॥ जु० ॥ १५ ॥ दीजे शीख सनेहशुं रे, जेम जाउं महाराज रे ॥ कुंती नगरे जाइशुं रे, एम बोले वछराज रे ॥ जु० ॥ २० ॥ राय कहे सहु माहरूं रे, देशुं तुजने राज For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114