Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४१) मातजी,मानजो तमे मुज वाच॥रा॥५॥राजाराणी बे जणां, मान्यो मन संतोष ॥रा॥ मनकेसरी मुहतो कहे,मत देजो मुज दोष॥रा०॥ (पागंतरे)॥ नयणे नयण देखामजो,जाको राजा शोष॥रा॥६॥लबीडं मंत्री चल्यो, आयो कुमरो पास ॥ रा०॥ मनकेसरी तिहां मामीने, सघलो कीधो प्रकाश ॥रा॥७॥बार रतन साथे दीयां,दीधा हयवर दोय ॥रा॥प्रबन्नपणे दोउ काढीया, कर्म तणी गति जोय ॥ राण ॥७॥ साथे संबल घालीयो, घाट्यां बहुला दाम ॥ रा॥हित शिखामण देश्ने, नीसरीया आराम ॥राण ॥ए॥मनकेसरी मुहता तणे,बेहु जण लागा पाय॥राण ॥ जीवदान थाहरो दीयो, ते ऊरण किमहिं न थाय ॥ राम् ॥ १० ॥ श्रांखे आंसु नाखतां, मूकंता निशास ॥रा० ॥ हंसावलि राणी नणी, मलवा हुती श्राश ॥रा ॥ ११ ॥ माणस मन मांदि चिंतवे,मनोवंडित पूरेश ॥ रा०॥ दैव नणे रे बापमा, हुं तुज अवर करेश ॥ रा० ॥ १५ ॥ पुण्य विहुणां माणसां, चिंत्युं निष्फल थाय ॥ रा॥ जिम कूवामां गंयमी, आल माल हो जाय ॥ राम् ॥ १३ ॥ मनकेसरी कहे सांजलो, रोयां न लाने राज ॥ रा०॥ करतां दृढ
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