Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 49
________________ ( ४८ ) बेदतां आपणुं शीश || पा० ॥ कां० ॥ १७ ॥ पण बेदु तिहांथी नीसख्या रे, हो आव्या इणे उद्यान ॥ पाणी लेवाने हुं गयो रे, हो तुं सूतो इस रान ॥ पा० ॥ कां० ॥ १७ ॥ जोवो जाइ माहरो दिन का रिमो रे, हो घालुं गले में फास ॥ राग हतो जो मुजथी ताहरो रे, हो इणविध करे विमास ॥ पा० ॥ कां० ॥ १५ ॥ हंस मुवो माता जाएशे रे, हो हैडे होशे दाह ॥ नयणे नीरप्रवाह वशे रे, हो सरली देशे धाह ॥ प० ॥ कां० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ ३०२ ॥ || ढाल गीयारमी ॥ ॥ मायमी अनुमति दीयो मुज आज ॥ ए देशी ॥ ॥ माता मनमें जाणती जी, मो सरखी नहीं नार ॥ पुत्र जया बे जोगले जी, होशे मुज श्राधार रे ॥ बंधव ॥ १ ॥ तें कीधी निराश रे बंधव, हैये विमासी जोय ॥ ए कणी ॥ वे बालक महोटा होशे जी, जलशे शास्त्र अनेक ॥ नारी घणी परणावशुं जी, जिए मांहि घणो विवेक रे ॥ बंधव ॥ २ ॥ बे बालक राजा होशे जी, देखी बेनां सुख ॥ एहवी वात जो जाणशे जी, तो हैडे धरशे दुःख रे ॥ बंधव० ॥ ३ ॥ सेज सुंवाली पोढतो जी, के हींगोला खाट ॥ शुं तुं सूतो साथरे जी, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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