Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५०) सरोवर जल सिंची लीयो जी, शरीरे कीयो सनान॥ फिट रे हैमा कारिमा जी, जीव्यो तुं कये ज्ञान रे ॥ १४ ॥ बंधव ॥ एक तुरी हाथे ग्रह्यो जी, बीजे हुई असवार ॥ तिहाथी आघो संचयो जी, सुणीयो वाजिन धोकार रे ॥ १५ ॥ बंधव०॥ तिण दिशि थाघो संचयो जी, दी नगरी स्थान ॥ कुंती नगरी परगमी जी, बार जोयणगें मान रे॥१६॥बंधव०॥ लोक जणी तिहां पूढीयुंजी, नगरी नृपर्नु नाम ॥ तुरी रतन श्हां वेचीने जी, लेवं चंदन श्ण गम रे ॥ १७ ॥ बंधव ॥ ते चंदन हुँ वेश्ने जी, देशू बांधव दाग ॥ ढील हवे करवी नहीं जी, एम चिंते महानाग रे ॥ १७ ॥ बंधव०॥ वत्सराज कुंती गयो जी, वांसे पुण्य प्रकार ॥ गरुम पंखी तिहां श्रावीयो जी, हंस करेवा सार रे ॥ १५॥ बंधव०॥ जिण माले हंस बांधीयो जी, तिणहीज बेठो गमगरलज नाखी उपरे जी, विषतुं न रडुंनाम रे॥२०॥ बंधवः ॥ हंसराज सचित हुवो जी, नयणे निरखे रन्न ॥ वडे किणे शहां बांधीयो जी, एम चिंते ते मन्न रे ॥ १॥ बंधव० ॥ बोड्यां बंधन हाथ\ जी, दीतुं निर्मल नीर ॥ पाणी पी, प्रेमशुं जी, की,
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