Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 50
________________ (MR) वता मारग वाट रे ॥ ४ ॥ बंधव० ॥ मनोवांछित सुख पामतो जी, करतो सरस आहार ॥ कर्मवशे रण में पड्यो जी, अन्न न लाधो वार रे ॥ ५ ॥ बंधव० ॥ महेल जले तुं पोढतो जी, कर्मे वमनी बांय ॥ शीशां जिहां दीसतां जी, सो शिर नीचे बांह रे ॥ ६ ॥ बंधव० ॥ सेवक तुज सह सेवता जी, सहुको करता था । एकलको इहां विशम्यो जी, जोजो कर्मप्रकाश रे ॥ ७ ॥ बंधव० ॥ हुं मन मांहे जाणतो जी, बांधव बे मुज बांह ॥ मुजने कोण गंजी शके जी, ए शीतल बे बांह रे ॥ ८ ॥ बंधव० ॥ एम मन दुःख कीधुं पूएं जी, रोयां न घ्यावे राज ॥ रण रोया जाणे नहीं जी, एम जंपे वराज रे ॥ ए ॥ बंधव० ॥ एम मन पालुं वालीयुं जी, साहस घरी युं अंग ॥ एकलडो हुं इहांकणे जी, नहीं कोई बीजो संग रे ॥ १० ॥ बंधव० ॥ साहस धरीने उठीयो जी, पहोतो सरोवर ठाम ॥ समुद्र तणी परे सारखं जी, श्रवण सरोवर नाम रे ॥ ११ ॥ बंधव० ॥ रहे तिहां सारस पंखीयां जी, गरुड लहे विशराम ॥ जल श्राश्रय क्रीमा करे जी, वनतरु तिहां अजिराम रे ॥ १२॥ बंधवणा लघु बांधव कंधे करी जी, आयो वमनी देव ॥ वमनी शाखे बांधी यो जी, न पडे केहनी दृष्ट रे ॥ १३ ॥ बंधव० ॥ हं० ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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