Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 63
________________ (६५) काम रे ॥ जो ॥१६॥ शीखामण दीधी घणी रे, श्राव्यो मुम्मण तेह रे ॥ जो॥प्रवहण पवने पूरीयु रे, शुकन जलां ते लेह रे ॥ जो ॥ १७ ॥ अश्व लीधा साथे घणा रे, लीधा सहस जूकार रे॥जो०॥ केता दिनने श्रांतरे रे, पाम्यो समुज्नो पार रे ॥जो० ॥१०॥ कनकावत। जश् उतस्यो रे, नेट्यो पृथ्वीनाथ रे ॥ जो॥ राजा श्रादर श्रापीयो रे, दीगे बहुलो साथ रे ॥ जो० ॥ १५ ॥ तिण नगरे कोठी रह्या रे, मांड्यो बहु व्यवसाय रे ॥ जो ॥ वराज पांमव थापीयो रे, नित नित पावण जाय रे ॥ जो० ॥ २० ॥ कांबलमो वम पहेरणे रे, बु सूकुं खाय रे ॥ जो ॥अपलाणे घोड़े चडे रे, पवन तणी परे जाय रे ॥ जो ॥१॥ कनकन्त्रम राजा तणी रे, पुत्री गुण श्रनिराम रे॥जो॥रति रंजा तिण सारिखी रे, चित्रलेखा जसु नाम रे ॥ जो० ॥ ॥ कुंवर जणी तिण निरखीयुं रे, लक्षण अंग बत्रीश रे ॥ जो० ॥ अपलाणे घोडे चढे रे, दंमायुध उत्रीश रे ॥ जो० ॥२३॥ पुरुष तणी सघली कला रे, जाणे शास्त्र विचार रे ॥ जो० ॥ पूरी पुण्य पोते हुवे रे, तो थाये जरतार रे ॥ जोग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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