Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 64
________________ ( ६३ ) ॥ २४ ॥ कुमरीए दासी मोकली रे, वछ कुमरनी पास रे ॥ जो० ॥ नारी हुं हुं ताहरी रे, पूर हमारी आश रे ॥ जो० ॥ २५ ॥ तुजशुं कीधो नेहडो रे, जेम चूनीने हेम रे ॥ जो० ॥ जेम चकोर चित्त चंद्रमा रे, दीगं वाधे प्रेम रे || जो० ॥ २६ ॥ के तुं मुजने आदरे रे, नहींतर बांडुं प्राण रे ॥ जो० ॥ माहरे मन तुंहीज वसे रे, एहवी बोली वाण रे ॥ जो० ॥ २७ ॥ दासी वचनज मानीयुं रे, दासी दुइ उल्लास रे || जो० ॥ मदनरेखा उतावली रे, श्रावी कुंवरी पास रे ॥ जो० ॥ २७ ॥ ढाल हुइ पचवीशमी रे, कुंवरी आणंदपूर रे || जो० ॥ परणी जो पुण्य पूरुं दशे रे, कहे श्रीजिनोदय सूरिरे ॥ जो० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ २२२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मदनरेखा तव मूकीने, वात जणावी राय ॥ संवरमंरुप मांगीयो, कुमरी आनंद थाय ॥ १ ॥ राय वात मानी तिहां, तेड्या सघला नूप ॥ संवरमंरुप श्रावीया, सुंदर सकल सरूप ॥ २ ॥ मल्या लोक मंडप घा, बेठा गमो ठाम ॥ पुष्पदंत वनराजशुं, यावी बेठो ताम ॥ ३ ॥ चित्रलेखा कुमरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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