Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 57
________________ (५६) हुँ खेश्शुंजी, माथे देश्याल हो॥बांग॥११॥थापणमोस धनकारणे जी, धन ले अनर्थ मूल ॥अश्व रतन जब मागीयां जी, माथे उग्युं शूल हो॥ बांग॥१२॥ धनकारण जूके रणे जी, धनकारण सेवे खाट ॥धनकारण कूमां करे जी, धन पडावे वाट हो॥ बांग॥१३॥ धनकारण कर्षण करे जी, धनकारण सेवे पाय ॥ धनकारण बंधव वढे जी, धन वहेंची सहु खाय हो ॥ बां० ॥ १४ ॥ मुम्मण शेठ चंदन लीयो जी, पण मन मांहे बे पाप ॥ अश्व लीयो थें आपणा जी, शेठ कहे एम आप हो ॥ बां० ॥१५॥ रत्न पठी हुं श्रापशुं जी, रतन पड्यां ने गेह ॥वराज तिहां मूकीयो जी, वाम बांध्या ने जेह हो ॥ बांग ॥१६॥अश्व लीया बे थापणा जी, एके वाली टांग ॥ बीजो हाथे संग्रह्यो जी, शोध करे हवे सांग हो ॥ बांग ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ४६५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ शेठे कीधो कूकुड, धा धा रे जाय ॥ श्रश्व लीया एणे माहरा, सहको भाया धाय ॥१॥तेहवे त्यां फिरतां थका, थाव्या नगर तलार ॥ शेठे लक्ष देखामीयो, देवा लाग्या मार ॥२॥ अश्व लक्ष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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