Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 60
________________ (un) राज ॥ १८ ॥ क० ॥ नगरलोक मल्यां घणां, जोवाने काज ॥ कोटवाल घरणी तिसे, दीगे वच्छराज ॥ १८९ ॥ क० ॥ देखीने मन चिंतवे, इणनो नहीं दोष ॥ खुन खता इसमें दुवे, तो तातो पीढुं हुं कोश ॥ २० ॥ क० ॥ कोटवाल घर तेमीयो, जंपे घरनार ॥ पुरुषरत्न किम मारीए, ए कोण आचार ॥ २१ ॥ क० ॥ बालहत्या महोटी कही, जाणी न करे कोय ॥ एम जाणी तुमे राखवो, पुण्य बहुलुं होय ॥ २२ ॥ क० ॥ ए बालक घरे राखशुं, थापशुं मुज पूत ॥ ए वालक राख्यां थका, रहेशे घरनुं सूत्र ॥ २३ ॥ क० ॥ सर्व गाथा ॥ ४८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कोटवाल मान्युं वचन, हुकरायां सहु लोक ॥ प्रछन्नपणे घर आणीयो, जाग्यो बेदुनो शोक ॥ १ ॥ पुत्र करीने थापीयो, को नवि जाणे वात ॥ शेठ थकी arai रहे, कीधो नरनो घात ॥ २ ॥ एम करतां दिन बहु थया, शेठने लोन अपार ॥ शुभ दिन इहांथी पूरीयां, समुद्र वहा अढार ॥ ३ ॥ वस्तु सदु लीधी घणी, मेल्यो बहुलो साथ ॥ पुष्पदंत माजी हुर्द, बीधी बहुली आथ ॥ ४ ॥ शुभ दिन प्रवहण पूरीयां, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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