Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(५१) स्नान शरीर रे॥२२॥बंधवः ॥ बीजो खंग पूरी हुई जी, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ जणतां गुणतां संपजे जी,नव निधि आणंदपूर रे ॥ २३॥ बंधव ॥ इति हंसवनप्रबंधे हंसवछपरदेशगमनहंसपुःखसहननामा द्वितीयः खंडः संपूर्णः॥॥ सर्व गाथा ॥ ४१६ ॥
॥ खंड त्रीजो॥
॥ दोहा॥ ॥ हवे त्रीजो खंग बोलशु, थाणी मन आणंद ॥ सान्निध्य करजो सरसती, वली जयतिलक सूरींद ॥१॥ विकथा निसा परिहरी, सुणजो बाल गोपाल ॥ सुणतां अचरिज उपजे, कांश मत जंखो बाल ॥२॥ हंसराज जोवे तुरी, नवि देखे वबराज ॥ वन देखे बीहामणुं, सुणे सिंहनी गाज ॥३॥
॥ ढाल पहेली ॥ ऊलालीयानी देशी ॥ ॥ हंस तिहांथी जीयो रे, जोवे तरुवर आम ॥ बंधव मोरा रे ॥ मुजने मूकी किहां गयो रे, ए उत्तमनुं नहीं काम ॥ बंग ॥१॥ महारं मनडुं बंधव किम रहे रे, तुज विरहो न खमाय ॥ बंधव०॥ तुज विरदे हुँ आकुलो रे, तुम विण किम दिन जाय ॥ बंधव०॥२॥मन मांहे हुं जाणतो रे, नहीं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114