Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५३) नाश् कारण नगरी जमे रे, को न कहे तसु वात ॥ बं॥कबाढो केव्हण मिल्यो रे, परमाररी जात॥ बं०॥१२॥ वात पूडी सवि गामनी रे, महारं केव्हण नाम ॥बंग॥ पुत्र पंच माहरे रे, एक एकथी अनिराम ॥ बं०॥ १३॥ श्रावो घरे तुमे श्रापणे रे, थापीश तुमने पुत्त ॥बं॥वात मानी तिहां हंसजी रे, दीगे एवो सुत्त ॥ बंग ॥ १४ ॥ तेहने घरे रहेता थका रे, इंधण थाणे हाथ॥बंगाबए जाइ जोवे सदा रे,आवे जावे साथ ॥ बं० ॥ १५॥ हवे चरित्र वमा जानुं रे, पहोतो कुंती गम ॥ बं॥चंदन लेरॉचिंतवे रे, देश बहुला दाम ॥ बं० ॥ १६ ॥ गम ठाम ते पूतो रे, दीगे मुम्मण हाट ॥बं॥मोटुं पेट मातो घणो रे,सेवे नरना था ॥ बं० ॥ १७ ॥ वडराज मन चिंतवे रे, दीसे रुडे घाट॥ बं०॥ दीसे जेह सुंहालमा रे, तेहज पाडे वाट ॥ बं०॥१॥हाट जउनो रह्यो रे, दीगे मुम्मण शेठ ॥ बं० ॥ गादी दीधी आपणा हाथद्यु रे, बेगे नीची दृष्टि ॥ बं० ॥ १७ ॥ शेव कहे वचराजने रे, श्रश्वरत्न दो हाथ ॥ बंग ॥ अवर को दीसे नहीं रे, एकाकी बीजो साथ ॥ बं० ॥२०॥ वलतो वचन कहे शेग्ने रे, अमे बांधव हुता दोय
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