Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४६) लेवा काज ॥वांसे सुखे हंस विशम्यो रे, होवाट जोवे हंसराज ॥१॥पाणीडं पा लाइ हुँ तरस्यो थयो रे, हो कांजोवामो रे वाट॥ पाणीमा विहुंणो रे जाइ हुँ केम रहुं रे, दण मांहे थयो उच्चाट ॥ पा० ॥ कांग॥ ॥२॥हवे वांसे जे कौतुक हुवो रे, हो वमनी टाढी बगंह ॥नीचे बीगयो खमनो साथरो रे,हो देशीशे बांह ॥ पा ॥ कां ॥३॥ आवी निमा वली हंसने रे, हो बमो नीसरीयो साप ॥ हंस सूतो आव्यो तिहां रे, हो पोते प्रगट्युं पाप ॥पा॥ कां ॥४॥ गम गम हंसने मश्यो रे, हो बेगे हियडे आय॥ पवन पीयो तिणे पापीए रे, हो मशणी रक्त ते खाय ॥पा॥कां० ॥५॥मारग आयो वत्स उतावलो रे,हो ना केरे रे काज ॥ पाणी पाश्ने ढुं सुख करुं रे, हो एम चिंते वछराज ॥ पा० ॥ कां० ॥ ६ ॥सर्प दोगे वबने आवतो रे, हो उतरीयो ततकाल ॥ वनराजे पण नयणे निरखीयो रे, हो दीगं पेठी जाल ॥ पा ॥ कां ॥७॥ नाग गयो निज स्थानके रे, हो पेगे वमने मूल ॥ हंसराज सूतो तिहां आवीयो रे, हो दीगे डंशनो शूल ॥ पा॥ कां० ॥७॥नील वरण तनु निरखीयो रे, हो जोवण लाग्यो नाम ॥
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