Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ (४३) वात रे ॥ ली०॥ मनकेसरी मन अटकली रे लाल, लीधी अंगनी धात रे ॥ ली ॥ रो॥४॥कहे मंत्री सुण मातजी रे लाल, हंसे कही एक वात रे ॥ ली ॥राणी वचन नवि मानीयां रे लाल, तो थावे जे घात रे ॥ली०॥रो॥५॥राणी वचन जो मानता रे लाल, तो थावत सहु काज रे ॥ ली॥ तिणी वेला हुँ पांतस्यो रे लाल, एम बोल्यो हंसराज रे ॥ ली ॥ रो० ॥६॥जो मुखथी एम नाखीयुं रे लाल, कांश विणाश्यो बाल रे॥ली० ॥ प्रबन्नपणे यहां राखती रे लाल, हवे मुज दुवो साल रे ॥ ली० ॥ रोग ॥७॥ कांश कुमति मुज जपनी रे लाल, धूणे राणी शीश रे ॥ ली०॥ अण विमास्युं में कीयुं रे लाल, रूठगे मुज जगदीश रे॥ली ॥रो॥७॥ मनकेसरी मन चिंतवे रे लाल, राणी तणां ए काम रे ॥ ली॥ राजाने नंगेरीयो रे लाल, माम गमाश् गाम रे ॥ ली ॥रो० ॥ए ॥ वात सुणो हवे धागली रे लाल, सुणतां अचरिज थाय रे॥ ली ॥रात दिवस वाटे वहे रे लाल, अति जय मन न खमाय रे॥ली॥रो० ॥ १० ॥ विषमा पर्वत वांकमा रे लाल, विषमी बहेता वाट रे ॥ ली० ॥ नदीयां निज्जरणां नीहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114