Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ (२७) निराश ॥ नूख तृषा सहु विसरी रे राय, कुमर न दे रे पास ॥१॥ससनेही राय, एक घमीरे ब मास॥ बिहुँ कुमर विण किम करुं रे राय, दी। पूगे आश ॥ वालेसर राय, एक घमी रे मास ॥ ए आंकणी ॥२॥ तेमावो पुत्र बे माहरा रे राय,श्राणो मुजनी रे पास ॥ पुत्र न देखें जां लगे रे राय, तां लगे रहुँ रे जदास ॥स॥३॥ जिण दिन नयणे निर सो मुज दिहाडो धन्य ॥ राय कहे राणी जणी रे राय, कर रुडं तुं मन्न॥स॥४॥राणीने धीरज दीयो रे राय, मूक्या तेमवा ठेठ ॥ मछी जिम ते टलवले रे राय, दोहिनुं जगमें पेट ॥ स० ॥ ५॥पनर वरष पूरी हुवां रे राय, आया पुरपेगण ॥ दीधी पुरोहित वधामणी रे राय, बेग सहु दीवान ॥स०॥६॥ महोत्सव करी मांहे लीया रे राय, घुस्या निशाने घाव ॥ घर घर गूमी उबले रे राय, प्रणमी तातना पाय ॥ स० ॥७॥ सहु जनने अचरिज हुवो रे राय, कदही न सुणीया एह ॥ ए अलगा किम मूकीया रे राय, एवी नेहनी देह ॥स॥७॥ खोले बेहु बेसामीया रे राय, पूढे पंमित वात ॥ लगन जोवो थे रुपडो रे राय, जाय मिले निज मात ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114