Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 37
________________ ( ३६ ) ताहरु रूप देखी करी, उपनो मुज मन मोह रे ॥ दीन वचन मुख जाखती, लोचन जरी मुख जोह रे || ता० ॥ १ ॥ जलचर जीव जिम जल विना, मरण लहे ततकाल रे ॥ तिम तुज विरहे हुं कुली, कामडुःख परहुं तुं टाल रे ॥ ता० ॥ २ ॥ नमन करी खोलो पाथरे, नयणे न खंडे ( राणी ) धार रे ॥ माहरे जीवन तुं सही, कर दवे मुज ती सार रे ॥ ता० ॥ ३ ॥ वचन मारुं तुमे मानशो, श्रापशुं तुज जी राज रे ॥ कुमर ए वचन सुणी कोपीयो, बोलीयो तव हंसराज रे ॥ ता० ॥ ४ ॥ इण जवे मात तुं माहरी, मुज थकी किम पडे वंश रे ॥ समुद्र मर्यादाथी जो मिटे, अनि करे जो शशंक रे ॥ ता० ॥ ५ ॥ पश्चिम सूर जो उगमे, धरणी रसातल जाय रे ॥ सायर मीतुं जो जल दुवे, तो मुज काम न थाय रे ॥ ता० ॥ ६ ॥ कुमर जी कहे मानिनी, मान तुं माहरी वात रे ॥ तुठीय सुख तुज पूरशुं, रूठीय करशुं तुज घात रे ॥ ता० ॥ ७ ॥ कुमर जणे सुण मातजी, रुडे मूंडं किम थाय रे ॥ मिश्री खातां थका दंत जो, पकी जाय तो जाय रे ॥ ता० ॥ ८ ॥ कुमरजी साहस यादरी, लोपी मातनी लाज रे || हाथथी खेंची For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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