Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३४) औपदी हरी, पांचे पांडव नार ॥ कृष्णबले आणी सती, दोहिलो काम संसार ॥३॥ ॥ ढाल पांचमी॥ ॥ सीताने संदेशो रामजीए मोकल्यो रे ॥ अथवा ॥ निंदा म करजो कोश्नी पारकी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ हंसकुमर राणीने कहे रे, में कीधो तुमने जुहार रे॥ मुज श्राशीष न दीधी तुमे रे, कहो मुज किस्यो प्रकार रे ॥ हं० ॥१॥ बोरु कुबोरु हुवे सदा रे, मा बाप न धरे रीस रे ॥ अणख आया माटे शुं करे रे, माय बाप धूणे शीश रे ॥ हं० ॥२॥ कार लोपी कहे कामिनी रे, न गणे सगपण लाज रे ॥ रीस नहीं कांशमाहरे रे, माहरे ने तुजणुं काज रे ॥ हं० ॥३॥ सगो पुत्र नहीं तुं माहरो रे, हुं तुज शोकी मात रे ॥ण सगपण कांहिं नहीं रे, अंतर दिन ने रात रे ॥ हं ॥४॥ हंस नणे हुं श्रावीयो रे, रतन दडाने काम रे ॥ राजलोक में जोश्यो रे, फिरीयो गमो गम रे ॥ हं० ॥५॥ तेह दमो गयो हाथथी रे, तेहनी ने मुज चिंत रे॥ राणी कहे ते आपशुं रे, जो मुज धरशो प्रीत रे॥ हंग॥६॥राणी दमो देखाडीयो रे, तो श्रापुं हुं तुजरे ॥ महारी वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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