Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 36
________________ (३५) मानो खरी रे, मति लोपे तुं मुज रे ॥ हं० ॥ ७॥ जंघा मांस मीतुं घणुं रे, कां आपणपे न खवाय रे॥ मात विचारी जुवो तुमे रे, ए काम मुजथी न थाय रे ॥ हं०॥७॥ कुमर कहे कामी जिको रे, ते थाय सदा अंध रे ॥ हित युगति जाणे नहीं रे, न लहे मर्मनो बंध रे ॥ हं० ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥२१॥ ॥दोहा॥ ॥ लीलावती राणी जणे, अंतर नहीं को देह ॥ बाप बेटी सासु वढू, नणंद नाणेजी तेह ॥१॥ कामविकारे कामिनी, न गणे अंतर कोय ॥बहेन जा माता सुता, चूकावे नर सोय ॥२॥ वेदसार ब्राह्मण तणी, कामबुब्धी घर नार ॥ वेदविचक्षण पुत्रशुं, चूकी करे संसार ॥३॥ आदिनाथ अरि. हंतजी, सगी बहेन घरवास ॥ रहनेमि राजीमती, रहीयां मनहिं विमास ॥४॥ पाप नहीं को कुमरजी, मोशुं धर तुं राग ॥ मान वचन तुं माहरूं, जो होय पोते जाग ॥५॥ ॥ढाल बही॥ ॥ राग केदारो ॥ सोलमो शांति जिनवर नमुं॥ अथवा ॥ स्वामी सीमंधर विनति ॥ ए देशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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