Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 21
________________ (२०) थाय ॥ क०॥ मानो वचन | माहलं रे हां, कुमरीपे ले जाय ॥क०॥१७॥मानी वात मांदेलीयो रे हां, सुणजो सहुको लोक ॥ क०॥काने मंत्र कही करी रे हां, कुमरीनो नांगँ शोक ॥क॥१॥लोक सहु पागं कीयां रे हां, कुमरी पडी अचेत ॥ कण ॥ पूरव वात मांडी कही रे हां, कुमरी हुश् सचेत ॥ क० ॥१॥ हंसावलि हरखित थश्रे हां, तें मेली पियुनी वात ॥क०॥ कहे पियु माहरो पंखीयो रे हां, किहां अवतरीयो तात ॥ कण्॥२०॥नाण तणे मेले करी रे हां, हुं जाणुं बिहुंनी वात ॥ क० ॥ पुरपयगणे परगमो रे हां, शालिवाहन राय विख्यात ॥ कण्॥१॥जादव वंशे परगडो रे हां, नरवाहन तेहनो पुत ॥ कम् ॥ चतुरंग दलबल जेहने रे हां, देश तिणे आण्यो सुत ॥०॥२॥त्रणसें साठ अंतेउरी रे हां,रतिरूपे रंज समान ॥ क० ॥ बावन वीर सेवा करे रे हां, जसु सेवे मंत्री प्रधान ॥क० ॥२३॥ हंसावलि हर्षित हुश्रेहां, सुणी कंत तणो अवदात ॥क० ॥ जो मुज कंतो मेलवे रे हां, तो गुण मानुं हुं तात ॥०॥ २४॥ नरवाहन राय मेलशुं रे हां, तुं मान विशवावीश ॥ क० ॥ परणाईं परगटपणे रे हां, जो करशे जगदीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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