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(२५) ॥ हयवर गयवर हींसता, लोक तणा नहीं ज्ञान ॥५॥ सत्यावीश दिन श्म गया, कुमरी जोवे वाट॥ जल विण मही टलवले, खिण खिण करे उच्चाट ॥६॥
॥ ढाल दशमी ॥ ॥ राग खंजायती ॥ लाखा फुलाणीना
गीतनी देशी॥ ॥ कुमरी मन उहवाय, अणविचाखु हो कंता में कीयुं ॥ वरस समो दिन जाय, उःखे नहीं फाटे हो कंता मुज हियुं ॥१॥ खिण बाहिर खिण मांहि, गोंख चढी हो कुमरी वलवले ॥ सो धन्य दिन ने मास, पूरव जवनो हो कंतो मुज श्रावी मिले॥२॥ फट जूंडा चित्रकार, बोल न पाल्यो हो किम तें ताहरो ॥लोज धरी मन मांहि, धन लीधो हो कपटे तें माहरो॥३॥अवधि कही एक मास, जश्ने हो कुंवर हुँ थाणुं श्हां ॥हजी शे न श्राव्यो तेह, मुज कारण हो राय आवे किहां॥४॥तेमाव्या सहु राय, संवरा हो मंगप सहु श्रावी मल्या॥ बिहुँ दिन पहिली जाय, दीगे हो चित्रहारो कुमरी पुःख टव्यां ॥५॥कहे चिताराने वात, नरवाहन राजा हो कब श्हां श्रावशे ॥ आयो मोरी मात, दीग हो राजाने सहुए वधा
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