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तृप्ति
१२७ गटगटानेवाला इन्द्र अथवा महेन्द्र, कोई सुखी नहीं है । निरंतर अतृप्ति की ज्वाला में प्रज्वलित राजा-महाराजा अथवा सेठ-साहुकार कोई सुखी नहीं है। भले तुम उन्हें सुखी मान लो । लेकिन तुम्हारी कल्पना कितनी गलत है, यह तो जब किसी सेठ–साहूकार से जाकर पूछोगे, तभी ज्ञात होगा ।
विश्वविख्यात धनी व्यक्ति हेनरी फोर्ड से एक बार किसी पत्रकार ने पूछा था... "संसार में सभी दृष्टि से आप सुखी और सम्पन्न व्यक्ति हैं, लेकिन ऐसी कोई चीज है, जो आप पाना चाहते हैं फिर भी पा नहीं सके हैं ?" ।
"आप का कथन सत्य है। मेरे पास धन है, कीर्ति है और अपार वैभव है। फिर भी मानसिक शान्ति का अभाव है । लाख खोजने पर भी ऐसा कोई संगी-साथी नहीं मिला, जिसके कारण मुझे शान्ति और मानसिक स्वस्थता मिले।" हेनरी ने गंभीर बन, प्रत्युत्तर में कहा ।
विश्व के धनाढ्य और सम्पन्न व्यक्तियों को देखकर ऐसा कभी न मानो कि 'वे कितने सुखी और सम्पन्न हैं !' भौतिक पदार्थों के संयोग से शान्ति नहीं मिलती । भले इन्द्रियजन्य सुख से तुम प्रसन्न होंगे, लेकिन कदापि न भूलो कि वे सुख क्षणभंगुर हैं और दुःखप्रद हैं । जब तुम उनकी अन्तर्वेदना की कहानी सुनोगे, तब तुम्हें अपनी घास-फूस की छोटी झोंपडी / कुटिया लाख दर्जे अच्छी लगेगी, बजाय उनके विशाल बंगले और वैभवशाली भव्य रंगमहल के । उनकी धनिकता के बजाय तुम्हें अपनी दरिद्रता सौगुनी बेहतर महसूस होगी। धन, कीर्ति, वैभव, धिक्कार के पात्र लगेंगे ।
तब क्या इस संसार में कोई सुखी नहीं है ? नहीं भाई, यह भी गलत है। इस संसार में सुखी भी हैं और वे हैं-मुनि । “भिक्षुरेकः सुखी लोके" एकमात्र भिक्षुक । अणगार / मुनि संसार में सर्वाधिक सुखी और सम्पन्न व्यक्ति हैं । लेकन जानते हो उनके सुख का रहस्य क्या है ? क्या उन्हें द्रव्यार्जन करना नहीं पड़ता, अतः सुखी हैं ? नहीं, यह बात नहीं है । जिस विषय-तृष्णा के पोषण हेतु तुम्हें द्रव्यार्जन करना पड़ता है, वह (विषय-तृष्णा) उनमें नहीं है । अतः वे परम सुखी हैं ।
श्री उमास्वातिजी ने उन्हें 'नित्य सुखी' संज्ञा से संबोधित किया है ।