Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 607
________________ ५८२ ज्ञानसार इस तरह वर्तमान में उपलब्ध ४५ आगमों को इन चार अनुयोगों में विभक्त किया गया है। २९. ब्रह्म-अध्ययन 'नियाग-अष्टक' में कहा है : ब्रह्माध्ययन निष्ठावान् परब्रह्म समाहितः । ब्राह्मणो लिप्यते नाधैः नियागप्रतिपत्तिमान् ॥ इस श्लोक के विवेचन में 'ब्रह्म-अध्ययन' में निष्ठा, श्रद्धा, आस्था रखने के लिए कहा है। श्री आचारांग सूत्र का प्रथम भाग यही ब्रह्म अध्ययन है। हालाँकि यह श्रुतस्कंध है, परन्तु श्री यशोविजयजी महाराज ने अध्ययन के रुप में निर्देश किया है । इस प्रथम श्रुतस्कंध के नौ अध्ययन थे परन्तु इनका ‘महापरिज्ञा' नामक सातवाँ अध्ययन करीब हजार वर्षों से लुप्त है। 'सत्थपरिण्णा लोगविजओ य सीओसणिज्ज सम्मत्तं । तह लोगसारनामं धुयं तह महापरिण्णा य ॥ अट्ठएम य विमोक्खो उवहाणसुयं च नवमगं भणियं ।' -आचारांग-नियुक्ति, ३१-३२ (१) शस्त्र परिज्ञा (२) लोक विजय (३) शीतोष्णीय (४) सम्यक्त्व (५) लोकसार (६) धूताध्ययन (७) महा परिज्ञा (८) विमोक्ष (९) उपद्यानश्रुत श्री शीलांकाचार्यजी कहते हैं, "ये नौ अध्ययन संयमी आत्मा को मूल गुण और उत्तर गुणों में स्थिर करते हैं, इसलिए कर्म निर्जरा के लिए इन अध्ययनों का परिशीलन करना चाहिए।'

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