Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
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________________ योनि तिमिरान खोमिम HIP विकारता भाति तथाऽत्मन्यदिवे तमिसंद रेखामिश्रिता यथा। शुद्धेमपि ते तथा मन्यविवेकतः // 15 // 3 // विकार मात्र शता वाढेऽपि लोमि तिमिरान कत // 15 // 3 // विकारात भाति तथा शऽपि व्योणि विमिराद रेखाभिनित / विकारमिता भाति तथास्यविवेकाती मैश्रता यथा / रापिमानि तिमिरान वकतः // 12 // विकारमिता भाति तो - शुढेऽपि व्यास्ति तिमिराद् रेखामिर्मिश्रता विकारमिता भाति तथा प्रवकतः / प्रकाशक शाब श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ पनि तयाऽत्म हरिद्वार * दिल्ली रणाशावा

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