Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ प्रक्षेपि न्यायाचार्य न्यायविशारद रेखाभिामला महोपाध्याय श्री यशोविजयजी - विरचित कतः ज्ञानसार त्मन् मूल श्लोक, श्लोकार्थ और विवेचन सहित रामश्रता ना यथा । नमिरा रेखा भाति तथाऽत्मन्य समिधा यथा विवेक जपि व्योनि मिश्रतकथा रमिता भाति विवेचनकार या ॥१५॥ __पंन्यासप्रवरश्री भद्रगुप्तविजयजी गणिवर प्रकाशक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ जितथाऽत्मन्यवि हरिद्वार • दिल्ली या विकारामः

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 612