Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 8
________________ प्रस्तावना उपाध्याय यशोविजयजी विरचित ज्ञानसार एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण I ग्रन्थ है । इसको विद्वानों ने जैन गीता भी कहा है । इसमें समग्र ज्ञानसागर का सार-अमृत प्राप्त होता है । अनेक भव्यात्माओं ने इसका अनुपान करके अमरत्व की अनुभूति की है। मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है। इस पर आचार्य भद्रगुप्तसूरिजी ने सरल एवं सुबोध हिन्दी में अर्थ एवं विवेचन लिखा है । यह अनुवाद अत्यन्त आदर के साथ सम्मानित हुआ और कुछ ही समय में अप्राप्य हो गया था । तत्पश्चात् अनेक जिज्ञासुओं के द्वारा इसके पुनः प्रकाशन की बार-बार विनती होती रही। इस बीच हरिद्वार में ज्ञानसार पर एक शिविर का आयोजन किया गया । उसमें इस ग्रन्थ के पुनः प्रकाशन के बीज बोए गए । हरिद्वार तीर्थमण्डल का सौभाग्य है कि इसे ज्ञानसार ग्रंथ के विवेचन के प्रकाशन की अनुपम लाभ मिल रहा है । आशा है कि यह ग्रन्थ सभी जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा । ट्रस्टीगण श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ, हरिद्वार

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