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परिशिष्ट : पैंतालीस आगम
३०. पैंतालीस आगम
आज से २५०० वर्ष पहले श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सर्वज्ञता प्राप्त करके धर्मतीर्थ की स्थापना की थी। उन्होंने ग्यारह विद्वान् ब्राह्मणों को दीक्षा देकर उन्हें 'गणधर' की पदवी दी। भगवन्त ने ११ गणधरों को 'त्रिपदी' दी। 'उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा ।' इस त्रिपदी के आधार पर गणधरों ने 'द्वादशांगी' (बारह शास्त्रों) की रचना की।
पाँचवें गणधर सुधर्मा स्वामी ने जो द्वादशांगी की रचना की, उनमें से बारहवां अंग 'दृष्टिवाद' लुप्त हो गया है। जो ग्यारह अंग रहे हैं उनमें से भी बहुत सा भाग नष्ट हो गया है, फिर भी जो रहा उसको आधार मानकर कालान्तर में अन्य आगमों की रचना की गई है।
इस तरह पिछले सैंकड़ों वर्षों से '४५ आगम' प्रसिद्ध हैं। इन आगमों के ६ विभाग हैं :
११ अंग १२ उपांग ४ मूलसूत्र ६ छेद सूत्र १० प्रकीर्णक
२ चूलिका सूत्र
इन ४५ आगमों पर जो विवरण लिखे गये हैं, वे चार प्रकार के हैं-(१) नियुक्ति (२) भाष्य (३) चूर्णी (४) टीका । ये विवरण संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में लिखे गये