Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 583
________________ ५५८ ज्ञानसार (१९) श्रुतभक्ति : ज्ञान-भक्ति । (२०) प्रवचनप्रभावना : जिनोक्त तत्त्वों का उपदेश आदि देना । पहले और अंतिम तीर्थंकर ने (ऋषभदेव और महावीर स्वामी) इन बीस स्थानकों की आराधना की थी। मध्य के २२ तीर्थंकरों में से किसी ने दो, किसी ने तीन... किसी ने सब स्थानकों की आराधना की थी। (-प्रवचनसारोद्धारः द्वार : १० के अनुसार) बीस स्थानक तप की आराधना की प्रचलित विधि निम्न प्रकार है । एक एक स्थानक की एक एक ओली की जाती है। एक ओली २० अट्ठम की होती है । अट्ठम (३ उपवास) करने की शक्ति न हो तो २० छ? (दो उपवास) करके ओली हो सकती है । अगर यह भी शक्ति न हो तो २० उपवास, २० आयंबिल या २० एकासणा करके भी ओली हो सकती है । एक ओली ६ महिनों में पूर्ण करनी चाहिए। ओली की आराधना के दिन पौषधव्रत करना चाहिए । सब पदों की आराधना में पौषधव्रत नहीं कर सकते हैं तो पहले सात पद की ओली में तो पौषधव्रत करना ही चाहिए । पौषध की अनुकूलता न हो तो देशावगासिक व्रत (८ सामायिक और प्रतिक्रमण) करें। ओली के दिनों में प्रतिक्रमण, देव वंदन, ब्रह्मचर्य पालन, भूमि शयन आदि नियमों का पालन करना चाहिए। हिंसामय व्यापार का त्याग, असत्य और चोरी का त्याग.... प्रमाद का त्याग करना चाहिए । २० स्थानक की २० ओली पूर्ण करने पर महोत्सव करें; प्रभावना करें, उजमणा करके इस महान तप की आराधना पूर्ण होने का आनन्द व्यक्त करें। । अगर ६ महिनों में एक ओली न हो तो वापिस ओली चालू करनी पड़ती है। हर एक ओली के दिन जिनेश्वर भगवान के समक्ष स्वस्तिक, खमासमण और काउसग्ग करना चाहिए । हर एक पद की २० नवकारवाली गिननी चाहिए। ये सब क्रिया करके उन पद के गुणों का स्मरण-चिंतन करके आनन्दित होना चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612