Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 598
________________ परिशिष्ट : यतिधर्म (३) जयन्त (४) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध अधोलोक : अधोलोक में नारकी, भवनपति देव, व्यन्तर आदि देव रहते हैं । सात नरक (१) रत्नप्रभा (२) शर्कराप्रभा (३) बालुकाप्रभा (४) पंकप्रभा (५) धूमप्रभा (६) तमः प्रभा (७) तमः तमः प्रभा क्रमशः एक के बाद एक नरक में ज्यादा - ज्यादा दुःख - वेदना होती है। उंचाई में सात नरक सात राज्यलोक प्रमाण है । सातवीं नरक की चौड़ाई सात राजलोक जितनी है । मध्यलोक : ५७३ मध्यलोक में मनुष्य, ज्योतिषदेव, तिर्यंच जीव रहते हैं। मध्यलोक में असंख्य द्वीप और समुद्र हैं । अपन मध्यलोक में हैं । २४. यतिधर्म है यति यानी मुनि - साधु - श्रमण और इनका जो धर्म है वह यतिधर्म कहलाता । साधुजीवन की भूमिका में मनुष्य को इन दस प्रकार के धर्म की आराधना करनी पड़ती है । (१) क्षान्ति : क्षमाधर्म का पालन करना । (२) मार्दव: मद का त्याग कर नम्र बनना । (३) आर्जव: माया का त्याग कर सरल बनना ।

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