Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 597
________________ ५७२ ज्ञानसार (३) यह लोक अनादि काल से है और अनंत काल तक रहेगा । (४) यह विश्व धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय से परिपूर्ण है। लोक के तीन भाग हैं : (१) ऊर्ध्वलोक। (२) अधोलोक । (३) मध्यलोक । ऊर्ध्वलोक: ऊर्ध्वलोक में वैमानिक देव और सिद्ध आत्मायें रहती हैं । बारह देवलोक : (१) सौधर्म (२) ईशान (३) सनत्कुमार (४) माहेन्द्र (५) ब्रह्मलोक (६) लान्तक (७) महाशुक्र (८) सहस्रार (९) आनत (१०) प्राणत (११) आरण (१२) अच्युत , बारह देवलोक पूरे होने के बाद उनके ऊपर नौ ग्रैवेयक देवलोक हैं । उनके ऊपर अनुत्तर देवलोक हैं। पाँच अनुत्तर-देवलोक : (१) विजय (२) विजयन्त

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