Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 600
________________ परिशिष्ट : गोचरी के ४२ दोष ५७५ (३) तथाकार : स्वयं के स्वीकार किये हुए सुगुरु का वचन बिना किसी विकल्प के 'तहत्ति' कहकर स्वीकार कर लेना चाहिए । (४) आवश्यकी (आवस्सही): ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना के लिये मकान के बाहर निकलते ही 'आवस्सही' बोलकर निकलना चाहिए । आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाना उसे आवश्यकी कहते हैं । (५) नैषेधिकी (निस्सीही) : आवश्यक कार्य पूर्ण करके साधु मकान में आये तब प्रवेश करते ही 'निस्सीही' बोलकर प्रवेश करे। . (६) पृच्छा : कोई काम करना हो तो गुरुदेव को पूछे–'भगवन् ! यह काम मैं करूं?' (७) प्रतिपृच्छा : पहले किसी काम के लिए गुरुदेव ने मना कर दिया हो परन्तु वर्तमान में वह काम उपस्थित हो गया हो तो गुरुमहाराज को पूछे कि : 'भगवन् ! पहले आपने यह काम करने के लिए मना किया था परन्तु अब इसका प्रयोजन है, अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं यह कार्य करूं?' गुरु महाराज जैसा कहें वैसा करे ।। ___'प्रतिपृच्छा' का दूसरा अर्थ यह है कि किसी काम के लिए गुरु-महाराज ने अनुमति दे दी हो तो भी वह कार्य शुरू करते समय पुनः गुरुमहाराज को पूछना चाहिए। (८) छंदणा : साधु गोचरी लाकर सहवर्ती साधुओं को कहे, 'मैं गोचरी (भिक्षा) लेकर आया हूँ. जिन्हें जो उपयुक्त हो वह इच्छानुसार ग्रहण करें ।' (९) निमन्त्रण : गोचरी जाने के समय सहवर्ती साधुओं को पूछे (निमन्त्रण ३) कि मैं आपके लिए योग्य गोचरी लाऊँगा ।' (१०) उसंपत् : विशिष्ट ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना के लिए एक गुरुकुल से दूसरे गुरुकुल में जाना । इन दस प्रकार के व्यवहार को सामाचारी कहते हैं। साधु-जीवन में इस व्यवहार का पालन मुख्य कर्तव्य है। २६. गोचरी के ४२ दोष साधु जीवन का निर्वाह भिक्षावृत्ति पर होता है। साधु-साध्वी गृहस्थों के घर से भिक्षा लाते हैं । परन्तु गोचरी लाने में सतर्कता के कुछ नियम हैं । इन नियमों का अनुसरण करके भिक्षा लानी चाहिए। अगर इन नियमों का पालन न करे तो साधु को

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