Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 590
________________ परिशिष्ट : चौदह पूर्व ५६५ पूर्वपद : संख्या १. उत्पाद ११ कोड पद २. आग्रायणीय ९६ लाख पद ३. वीर्य प्रवाद ७० लाख पद २०. चौदह पूर्व विवरण जिसमें 'उत्पाद' के आधार पर सर्व द्रव्य और सर्व पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। जिसमें सर्व द्रव्य, सर्व पर्याय और जीवों के . परिमाण का वर्णन किया गया है। जिसमें जीव और अजीवों के वीर्य का वर्णन, किया गया है। (अग्र-परिमाण, अयनम्-परिच्छेद अर्थात् ज्ञान) जो खरशृंगादि पदार्थ विश्व में नहीं हैं और जो धर्मास्तिकायादि पदार्थ हैं, उनका वर्णन इस पूर्व में है। अथवा हर एक पदार्थ का स्व-रुपेण । अस्तित्व और पर-रुपेण नास्तित्व प्रतिपादन किया है। इस पूर्व में पाँच ज्ञान के भेद-प्रभेद, उनका स्वरुप आदि का वर्णन किया गया है। ४. अस्ति नास्ति प्रवाद ६० लाख पद ५. ज्ञान प्रवाद १ क्रोड पद (एक कम) ६. सत्य प्रवाद १ क्रोड ६ पद ७. आत्म प्रवाद २६ क्रोड पद ८. कर्म प्रवाह १ क्रोड ८० लाख पद ९. प्रत्याख्यान प्रवाद ८४ लाख पद १०. विद्या प्रवाद ११ क्रोड १५ हजार पद सत्य यानी संयम, उसका विस्तृत वर्णन इस पूर्व में किया गया है। अनेक नयों द्वारा आत्मा के अस्तित्व का और आत्मा के स्वरुप का इस पूर्व में वर्णन है। ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों के बन्ध, उदय, सत्ता आदि का इसमें भेद-प्रभेद के साथ वर्णन है। प्रत्याख्यान (पच्चक्खाण) का भेद-प्रभेद के साथ इस पूर्व में वर्णन किया है। विद्याओं की साधना की प्रक्रियायें और उससे होनेवाली सिद्धियों का वर्णन इस पूर्व में है ।

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