Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 594
________________ परिशिष्ट : कारणवाद ५६९ स्पर्श किया जाता है, उस कालविशेष को सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्त कहते हैं । ___ हालाँकि ऊपर के बादर पुद्गल परावर्त कहीं भी सिद्धांत में उपयोगी नहीं है परन्तु बादर समझाने से सूक्ष्म का ज्ञान सरलता से हो सकता है, इसलिए बादर का वर्णन किया गया है । ग्रन्थों में जहाँ जहाँ 'पुद्गल परावर्त' आता है, वहाँ अधिकतर 'सूक्ष्म-क्षेत्र-पुद्गल परावर्त' समझना चाहिए । २२. कारणवाद कारण के बिना कार्य नहीं होता है। जितने कार्य दिखते हैं उनके कारण होते ही हैं । ज्ञानियों ने विश्व में ऐसे पाँच कारण खोजे हैं, जो संसार के किसी भी कार्य के पीछे होते ही हैं। (१) काल (२) स्वभाव (३) भवितव्यता (४) कर्म . (५) पुरुषार्थ कोई भी कार्य इन पाँच कारणों के बिना नहीं होता है। अब अपन एक एक कारण को देखते हैं। काल : विश्व में ऐसे भी कई कार्य दिखते हैं जिसमें काल (समय) ही कार्य करता हुआ दिखता है। परन्तु वहाँ काल को मुख्य कारण समझना चाहिए और शेष ४ कारणों को गौण समझना चाहिए। (१) स्त्री गर्भवती होती है वह निश्चित समय में ही बच्चे को जन्म देती है। (२) दूध से अमुक समय में ही दही जमता है । (३) तीर्थंकर भी अपना आयुष्य बढ़ा नहीं सकते हैं और निश्चितसमय में उनका भी निर्वाण होता है । (४) छ: ऋतु अपने अपने समय से आती हैं और बदलती हैं । इन सब में काल प्रमुख कारण है। विवक्षितैकसमयबद्धरससमुदायपरिमाणम्। . अनुभाग बन्ध स्थानानां निष्पादका ये कषायोदयरूपा अध्यवसायविशेषा तेऽप्यनुभागबन्धस्थानानि।

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