Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 584
________________ परिशिष्ट : उपशम श्रेणी ५५९ जाप का पद स्वस्तिक | खमासमण | काउ. लो. नवकारवाली ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो पवयणस्स ॐ नमो आयरियाणं ॐ नमो थेराणं ॐ नमो उवज्झायाणं ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं ॐ नमो नाणस्स ॐ नमो दंसणस्स ॐ नमो विणयसम्पन्नस्स ॐ नमो चारित्तस्स ॐ नमो बंभवयधारिणं ॐ नमो किरियाणं ॐ नमो तवस्स ॐ नमो गोयमस्स ॐ नमो जिणाणं ॐ नमो संयमस्स ॐ नमो अभिनवनाणस्स ॐ नमो सुयस्स ॐ नमो तित्थस्स ३८ 'बीस स्थानक पद पूजा' तथा 'विधिप्रपा' आदि ग्रन्थों से यह विधि-संकलित की गई है। १९. उपशम श्रेणी _ 'अप्रमत्तसंयत' गुणस्थानक में रही हुई आत्मा उपशम श्रेणी का प्रारंभ करती है। इस श्रेणी में 'मोहनीय कर्म' की उत्तर प्रकृत्तियों का क्रमशः उपशम होता है, इसलिए इसको 'उपशम श्रेणी' कहा जाता है। ...- - - ३८

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