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६. धर्मसंन्यास - योगसंन्यास
'सामर्थ्य योग के ये दो भेद हैं । समार्थ्ययोग क्षपकश्रेणी में होता है । यह योग प्रधान फल मोक्ष का निकटतम कारण है ।
१. धर्मसंन्यास :
क्षपकश्रेणी' में जब जीव द्वितीय अपूर्वकरण करता है, तब तात्त्विक रुप में यह 'धर्मसंन्यास' नाम का सामर्थ्य योग होता है । यहाँ क्षायोपशमिक क्षमा-आर्जवमार्दवादि धर्मों से योगी निवृत्त हो जाता है ।
अतात्त्विक' 'धर्मसंन्यास' में तो क्षायोपशमिक धर्मों का भी संन्यास (त्याग) कर दिया जाता है अर्थात् वहाँ जीव को क्षायिक गुणों की प्राप्ति होती है । तात्पर्य यह है कि क्षायोपशमिक धर्म ही क्षायिक रूप बन जाते हैं ।
ज्ञानसार
२. योग संन्यास :
'योग' का अर्थ कायादि के कार्य (कायोत्सर्गादि) हैं, इनका भी त्याग (संन्यास) सयोगी केवली भगवन्त 'आयोजिकाकरण' के बाद करते हैं ।
सयोगी केवली (१३वें गुणस्थानक पर ) समुद्घात करने से पहले 'आयोजिकाकरण' करते हैं । यह आयोजिका सभी केवली भगवन्त करते हैं ।
१. द्वितीयेऽपूर्वकरणे प्रथमो धर्मसंन्याससंज्ञितः सामर्थ्ययोगः तात्त्विक भवेत् । क्षपकश्रणियोगिनः क्षायोपशमतिकक्षान्त्यादिधर्मनिवृतेः । — योगदृष्टिसमुच्चये २. - अतात्त्विकस्तु प्रव्रज्याकालेऽपि भवति ।
- योगदृष्टिसमुच्चये
३. पञ्चसंग्रहे- क्षपक श्रेणि- प्रकरणे ।
समाधिः सविकल्पकः निर्विकल्पकश्च । निर्विकल्पस्य अङ्गानि - (१) यमा: अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः ।
(२) नियमाः शौच - संतोष- तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि ।
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(३) आसनानि करचरणादिसंस्थानविशेषलक्षणानि पद्यस्वस्तिकादीनि । (४) प्राणायामाः रेचकपूरककुम्भकलक्षणा: प्राणनिग्रहोपायाः । (५) प्रत्याहारः इन्द्रियाणां स्व-स्वविषयेभ्यः प्रत्याहरणम् ।
(६) धारणा अद्वितीयवस्तुन्यन्तरिन्द्रियधारणम् ।
(७) ध्यानं अद्वितीयवस्तुनि विच्छिद्य विच्छिद्य अन्तरिन्द्रियवृत्तिप्रवाहः । (८) समाधिस्तु उक्त सविकल्प एव । - - वेदान्तसार-ग्रन्थे
लय
-विक्षेप- कषाय- रसास्वादलक्षणाश्चत्वारो विघ्नाः । - वे. सारे