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परिशिष्ट : चौदह गुणस्थानक
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मिथ्यात्व का प्रभाव :
मदिरा के नशे में चकचूर मनुष्य जिस प्रकार हिताहित को नहीं जानता, उसी प्रकार मिथ्यात्व से मोहित जीव धर्म या अधर्म को नहीं समझता । विवेक नहीं कर सकता । धर्म को अधर्म तथा अधर्म को धर्म मान लेता है। २. सास्वादन-गुणस्थानक
पहले औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद, अनन्तानुबन्धी कषायों में से किसी एक से जीव फिसलता है परन्तु मिथ्यात्व दशा को प्राप्त करने में उसे कुछ देर लगती है । (एक समय से लेकर छ आवलिका तक) वहाँ तक वह सास्वादन कहा जाता है। 'सास्वादन' का प्रभाव :
यहाँ अति अल्पकाल में जीव औपशमिक सम्यक्त्व का रहा सहा आस्वादन करता है।
जिस प्रकार खीर का भोजन करने पर उल्टी हो जाय, किन्तु उसके बाद भी उसकी डकारें आती हैं, उसी तरह यहाँ औपशमिक समकित से भ्रष्ट होने पर भी, जहाँ तक मिथ्यात्व दशा को प्राप्त न करे वहाँ तक औपशमिक सम्यक्त्व का आस्वादन रहता
३. मिश्र-गुणस्थानक :
मिथ्यात्वदशा के बाद ऊपर चढ़ते हुए दूसरी दशा मिश्रगुणस्थानक की होती है । 'सास्वादन-गुणस्थानक' तो नीचे गिरते हुए जीव की एक अवस्था है। 'मिश्र' का अर्थ है सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनों का मिश्रण, यह मिश्र-अवस्था मात्र एक अन्तर्मुहूर्त काल तक रहती है। आत्मा की यह एक विलक्षण अवस्था है। यहाँ जीव में धर्मअधर्म दोनों पर समबुद्धि से श्रद्धा होती है। 'गुणस्थानक-क्रमारोह' प्रकरण में कहा है
तथा धर्मद्वये श्रद्धा जायते समबुद्धितः ।
मिश्रोऽसौ भण्यते तस्माद् भावो जात्यन्तरात्मकः ॥१५॥ मिश्रदृष्टि का प्रभाव :
यहाँ आत्मा अतत्त्व का या तत्त्व का पक्षपाती नहीं होता । इस अवस्था में जीव परभव का आयुष्य नहीं बाँधता है और मरता भी नहीं है ।