Book Title: Gyansara
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Chintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth

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Page 580
________________ परिशिष्ट : पाँच शरीर १७. पाँच शरीर इस विश्व में जीवों का शरीर सिर्फ एक तरह का ही नहीं है। चार गतिमय इस विश्व में पाँच प्रकार के शरीर होते हैं। ये पाँच भेद शरीर के आकार के माध्यम से नहीं हैं परन्तु शरीर जिन पुद्गलों से बनता है, इन पुद्गलों के वर्ण के माध्यम से हैं। यहाँ शरीर के अंगों का विवेचन 'विचारपंचाशिका' नामक ग्रन्थ के आधार से किया गया है। शरीर के नाम : (१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तैजस (५) कार्मण शरीर की बनावट : पाँच प्रकार के द्रव्यों में एक द्रव्य है पुद्गलास्तिकाय । ये पुद्गल चौदह राजलोक में व्याप्त हैं । इनकी २६ वर्गणायें (विभाग) हैं । इसमें जीवनोपयोगी केवल ८ वर्गणायें हैं। इसमें जो 'औदारिक वर्गणा' है, उससे औदारिक शरीर बनता है। 'वैक्रिय वर्गणा' के पुद्गलों से वैक्रिय शरीर बनता है। 'आहारक वर्गणा' के पुद्गलों से 'आहारक शरीर' बनता है । तैजस वर्गणा के पुद्गलों से तैजस शरीर बनता है और कार्मण वर्गणा के पुद्गलों से कार्मण शरीर बनता है। जैसे मिट्टी के पुद्गलों से मिट्टी के घड़े बनते हैं, सोने के पुद्गलों से सोने का घड़ा और चाँदी के पुद्गलों से चाँदी का घड़ा बनता है, उसी तरह इन पुद्गलों से उनके अनुरुप शरीर बनता है। किसका कौन सा शरीर होता है : • तिर्यंच एवं मनुष्य का औदारिक शरीर होता है । देव और नारकीय जीव का वैक्रिय शरीर होता है। (वक्रिय लब्धिवाले तिर्यंच और __ मनुष्य को भी वैक्रिय शरीर होता है 1)...

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