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शास्त्र
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सही अर्थ में बतानेवाला दीपक है शास्त्र । बिना शास्त्ररूपी 'गाइड' के तुम इन परोक्ष पदार्थों की सृष्टि में भटक जाओगे और हेरान-परेशान हो जाओगे । तुम इस तथ्य को अच्छी तरह जानते हो कि अन्धा मनुष्य अनजाने प्रदेश में भटक जाता है और तब तुम उद्विग्न होकर कह उठोगे कि 'यह सब निरी कल्पना है ! '
शास्त्रों का स्पर्श किये बिना पाश्चात्य देशों की उच्चतम डिग्रियाँ प्राप्त कर विद्वान् कहलानेवाले और स्वयं को कुशाग्र बुद्धि के धनी समझनेवाले मनुष्य, परोक्ष विश्व को मात्र कल्पना मान कर उस ओर दृष्टिपात भी नहीं करते !
लेकिन हे महामुनि ! तुम तो परोक्ष विश्व के अद्भुत रहस्य जानने-समझने के लिए प्रतिबद्ध हो । तुम्हें तो इन अगम अगोचर के रहस्यों को जानना ही होगा । उसके लिए शास्त्रज्ञान का दीपक अपनाना ही होगा, अपने पास रखना ही होगा । अन्धकार युक्त प्रदेश में विचरण करनेवाला अपने पास 'बेटरी' रखता ही है न ! किसी गड्ढे में पाँव न पड़ जाए, कोई कांटा पैर में चुभ न जाए, किसी पत्थर से टकरा न जाए, अतः बेटरी को महत्त्वपूर्ण साधन समझ कर साथ में रखता ही है। ठीक उसी तरह परोक्ष-पदार्थों की दुनिया में शास्त्र - दीप का प्रकाश फैलाती 'बेटरी' की गरज है ही, वर्ना अज्ञान के गड्ढे में पाँव पड जाएगा, राग का कांटा पाँव को आर-पार वींध देगा और मिथ्यात्व की चट्टानों से अनायास ही टकराने की नौबत आ जाएगी ! अतः सदा-सर्वदा शास्त्रज्ञान का दीप साथ में रखो ।
परोक्ष विश्व के रहस्यों का पता लगाना है न ? आत्मा, परमात्मा और मोक्ष की अपूर्व और अद्भुत सृष्टि का दर्शन करना है न ? तब आत्मा पर आच्छादित अनंत कर्मों के आवरण को उनकी जानकारी पाये बिना भला, कैसे हटा पाओगे ? कर्म - बन्धनों को छिन्न-भिन्न कैसे कर सकोगे ? शास्त्र - ज्ञान के दीप के बिना अनायास ही कर्म - बन्धनों की तिमिराच्छन्न दुनिया में खो जाना पडेगा ।
हाँ, सम्भव है कि परोक्ष-पदार्थों की परिशोध में तुम्हें जरा भी दिलचस्पी न हो, उनकी प्राप्ति के लिए तुम्हारे में उत्साह न हो और परोक्ष-पदार्थों के भण्डार को पाने के लिए आवश्यक हिम्मत तुम जुटा न पाते हों, तब शास्त्रज्ञान पाने की अभिरूचि तुम्हारे में कभी पैदा नहीं होगी ।