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ज्ञानसार
शुद्धि सह ' श्येनयज्ञ' का आयोजन करें तो ?' वे उसका निषेध करेंगे ! वास्तव में वेदोक्त यज्ञों के परमार्थ को आत्मसात् किये बिना ही सिर्फ अपनी ही मति - कल्पना के वशीभूत हो, हिंसाचार - युक्त पापप्रचुर यज्ञ कदापि स्वीकार्य नहीं हो सकते, ना ही कर्मयज्ञ को ब्रह्मयज्ञ कह सकते हैं ।
सर्वप्रथम ध्येय की शुद्धि करो । कहाँ जाना है ? क्या पाना है ? इसका स्पष्टीकरण होना आवश्यक है ! क्या मोक्ष में जाना है ? मोक्ष का ध्येय स्पष्ट हो . गया है ? विशुद्ध आत्म-स्वरुप प्राप्त करना है ? तब पाप - प्रचुर कर्मयज्ञ करने का क्या प्रयोजन ? अर्थात् ऐसे यज्ञ का कोई प्रयोजन नहीं है । अपने जीवन का हर पल, हर क्षण ज्ञान यज्ञ में लगा दो ? बस, दिन-रात अहर्निश ज्ञान - यज्ञ शुरू रहना चाहिए ।
ब्रह्मयज्ञः परं कर्म गृहस्थस्याधिकारिणः ।
पूजादि वीतरागस्य ज्ञानमेव तु योगिनः ॥ २८ ॥४॥
अर्थ : अधिकारी गृहस्थ के लिए केवल वीतराग का पूजन-अर्जन आदि ब्रह्म यज्ञ है, जबकि योगी के लिए ज्ञान ही ब्रह्मयज्ञ है ।
विवेचन : क्या ब्रह्मयज्ञ करने का अधिकार सिर्फ मुनिवरों को ही है ? क्या योगीजन ही ब्रह्मयज्ञ कर सकते हैं ? जो गृहस्थ हैं, उन्हें क्या करना चाहिए ? क्या गृहस्थ ब्रह्मयज्ञ नहीं कर सकते ? अवश्य कर सकते हैं, लेकिन इसके वे अधिकारी होने चाहिए, योग्यता प्राप्त करनी चाहिए ! योग्यता प्राप्त किये बिना वे ब्रह्मयज्ञ नहीं कर सकते और वह योग्यता है मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों की । 'न्यायसम्पन्न-वैभव' से लगाकर 'सौम्यता' पर्यंत मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों से मानव-जीवन सुरभित होना चाहिए। तभी वह ब्रह्मयज्ञ करने का अधिकारी है।
गृहस्थ-जीवन में थोड़े-बहुत प्रमाण में हिंसादि पाप अनिवार्य होते हैं। फिर भी अगर जीवन मार्गानुसारी है तो वह ब्रह्मयज्ञ कर सकता है ! उसका ब्रह्मयज्ञ है वीतराग का पूजन-अर्चन, सुपात्रदान और श्रमण- सेवा | हालाँकि इस तरह का ब्रह्मयज्ञ करने से दो प्रश्न उपस्थित होते हैं ! लेकिन उसका सरल / सहज भाव से समाधान करने से और उसे मान्य करने से मन निःशंक बनता है ।
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